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कई अन्य टीकों के मुकाबले ऐस्ट्राज़ेनेका के टीके का निर्माण, भंडारण और परिवहन, आसान और सस्ता है। इसी कारण इसे कई विकासशील व विकसित देशों की टीकाकरण रणनीति में देखा जा सकता है।
कई अन्य टीकों के मुकाबले ऐस्ट्राज़ेनेका के टीके का निर्माण, भंडारण और परिवहन, आसान और सस्ता है। इसी कारण इसे कई विकासशील व विकसित देशों की टीकाकरण रणनीति में देखा जा सकता है।
कई अन्य टीकों के मुकाबले ऐस्ट्राज़ेनेका के टीके का निर्माण, भंडारण और परिवहन, आसान और सस्ता है। इसी कारण इसे कई विकासशील व विकसित देशों की टीकाकरण रणनीति में देखा जा सकता है।
यह टीकों और प्रतिरक्षण के लिये बने विश्व गठबंधन की कोवैक्स सुविधा का एक अहम भाग है, जिसका उद्देश्य टीके को कई विकासशील देशों तक पहुंचाना है। कोवैक्स के अंतर्गत टीकों को बड़ी तादाद में खरीदा जाता है जिससे खरीदने के इच्छुक रोगियों और सरकारों के लिये खर्चा और भी कम हो।
ऐस्ट्राज़ेनेका ने भरोसा दिलाया है कि महामारी के दौरान टीके “लागत” पर ही बेचे जायेंगे, पर कंपनी ने इस संदर्भ में “लागत” की निश्चित परिभाषा नहीं दी है।
ऐडिनोवायरस मुख्य रूप से हानिकारक नहीं होते और ये अक्सर मनुष्यों और जानवरों में पाये जाते हैं। ये कुछ टीकों में काम में लिये जाते हैं, जैसे कि ऐस्ट्राज़ेनेका के। इन ऐडिनोवायरसों का अध्ययन और उपयोग वैज्ञानिक 1970 के दशक से वैक्सीन और वंशाणु चिकित्सा के लिए कर रहे हैं। इस टीके के अधिकार वैश्विक दवा निर्माता ऐस्ट्राज़ेनेका को प्रदान किए गए थे, जिन्होंने बदले में इसके निर्माण का लाइसेंस दुनिया भर की अन्य कंपनियों को दिया है, जिसमें सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया भी शामिल है। इस टीके के इतना जल्दी बन जाने के पीछे लंबे समय से चला आ रहा विज्ञान भी है। इस की वजह से ऐस्ट्राज़ेनेका की आपूर्ति श्रृंखला की लागत भी नये mRNA टीकों के मुकाबले कम रही है।
इसके विपरीत, फाईज़र और मॉडर्ना जैसे नए mRNA टीकों को अत्यधिक ठंडा रखना होता है, जिससे उनकी लागत बढ़ जाती है। जटिल रसायन, सूखी बर्फ और परिवहन के अन्य खर्चे ये कुछ कारण हैं जिनसे mRNA टीकों की लागत बढ़ जाती है। पर, ऐस्ट्राज़ेनेका और जॉन्सन & जॉन्सन जैसे एडिनोवायरस टीकों के लिये फ्रिज वाले ट्रक आसानी से मिल जाते हैं।
और इससे पहले mRNA टीकों की कोई मांग भी नहीं थी। जिसकी वजह से उनमें मौजूद कुछ घटकों की आपूर्ति श्रृंखला में कठिनाइयां रही होंगी। जबकि ऐडिनोवायरस टीकों की आपूर्ति श्रृंखलाएं लंबे समय से हैं और व्यवस्थित रही है, इसलिये उनके घटकों की आपूर्ति करना उतना कठिन नहीं है।
कई अन्य टीकों के मुकाबले ऐस्ट्राज़ेनेका के टीके का निर्माण, भंडारण और परिवहन, आसान और सस्ता है। इसी कारण इसे कई विकासशील व विकसित देशों की टीकाकरण रणनीति में देखा जा सकता है।
यह टीकों और प्रतिरक्षण के लिये बने विश्व गठबंधन की कोवैक्स सुविधा का एक अहम भाग है, जिसका उद्देश्य टीके को कई विकासशील देशों तक पहुंचाना है। कोवैक्स के अंतर्गत टीकों को बड़ी तादाद में खरीदा जाता है जिससे खरीदने के इच्छुक रोगियों और सरकारों के लिये खर्चा और भी कम हो।
ऐस्ट्राज़ेनेका ने भरोसा दिलाया है कि महामारी के दौरान टीके “लागत” पर ही बेचे जायेंगे, पर कंपनी ने इस संदर्भ में “लागत” की निश्चित परिभाषा नहीं दी है।
ऐडिनोवायरस मुख्य रूप से हानिकारक नहीं होते और ये अक्सर मनुष्यों और जानवरों में पाये जाते हैं। ये कुछ टीकों में काम में लिये जाते हैं, जैसे कि ऐस्ट्राज़ेनेका के। इन ऐडिनोवायरसों का अध्ययन और उपयोग वैज्ञानिक 1970 के दशक से वैक्सीन और वंशाणु चिकित्सा के लिए कर रहे हैं। इस टीके के अधिकार वैश्विक दवा निर्माता ऐस्ट्राज़ेनेका को प्रदान किए गए थे, जिन्होंने बदले में इसके निर्माण का लाइसेंस दुनिया भर की अन्य कंपनियों को दिया है, जिसमें सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया भी शामिल है। इस टीके के इतना जल्दी बन जाने के पीछे लंबे समय से चला आ रहा विज्ञान भी है। इस की वजह से ऐस्ट्राज़ेनेका की आपूर्ति श्रृंखला की लागत भी नये mRNA टीकों के मुकाबले कम रही है।
इसके विपरीत, फाईज़र और मॉडर्ना जैसे नए mRNA टीकों को अत्यधिक ठंडा रखना होता है, जिससे उनकी लागत बढ़ जाती है। जटिल रसायन, सूखी बर्फ और परिवहन के अन्य खर्चे ये कुछ कारण हैं जिनसे mRNA टीकों की लागत बढ़ जाती है। पर, ऐस्ट्राज़ेनेका और जॉन्सन & जॉन्सन जैसे एडिनोवायरस टीकों के लिये फ्रिज वाले ट्रक आसानी से मिल जाते हैं।
और इससे पहले mRNA टीकों की कोई मांग भी नहीं थी। जिसकी वजह से उनमें मौजूद कुछ घटकों की आपूर्ति श्रृंखला में कठिनाइयां रही होंगी। जबकि ऐडिनोवायरस टीकों की आपूर्ति श्रृंखलाएं लंबे समय से हैं और व्यवस्थित रही है, इसलिये उनके घटकों की आपूर्ति करना उतना कठिन नहीं है।
ऐस्ट्राज़ेनेका जो कि विषाणु पहुंचाने वाला टीका है, काफी कम मंहगा है और कई जगहों पर उपलब्ध है। ये जनवरी 2021 से ब्रिटेन व अन्य देशों में लगाया जा रहा है। इसका उत्पाद अभी तीन देशों में हो रहा है (ब्रिटेन, भारत, नीदरलैंड), और अलग-अलग नामों (वैक्सज़ेवरिया, कोविशील्ड) से इसे बेचा जा रहा है।
कोविड-19 महामारी के पहले, विषाणु पहुंचाने वाले टीके एबोला के टीके बनाने में काम आ चुके हैं। और इन पर ज़ीका, एड्स, टीबी और अन्य बीमारियों से बचाव करने के लिये एक विकल्प के तौर पर अध्ययन भी किया गया है। सार्स-सीओवी-2 विषाणु से बचाव के लिए ऐस्ट्राज़ेनेका, जैन्सन (जे&जे), कैनसाइनो व अन्य कई टीके, जो विषाणु पहुंचाकर काम करते हैं, काम में लिए जा रहे हैं। इनमें मनुष्यों, चिंपाँज़ी, और गोरिला आदि में से लिये गये कई तरह के अलग-अलग एडिनोवायरस होते है और इन्हें मांसपेशियों में लगाया जाता है, या खिलाया जाता है, या नाक में डाला जाता है।
कोविड-19 के लिये विषाणु पहुंचाने वाले टीके का सबसे पहले लोकार्पण करने वाला दल ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के जेनर संस्थान से था। मिडल ईस्ट श्वसन संबंधी सिंड्रोम के लिये उनके चिंपांज़ी एडिनोवायरस प्लेटफॉर्म पर टीका बनाने के उनके पहले के अनुभव की वजह से वे जल्दी से सार्स-सीओवी-2 के स्पाईक प्रोटीन युक्त टीका बना पाये। ये स्पाईक प्रोटीन मनुष्यों में (ChAdOx1) प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया शुरू कर देता है। इस प्रकार के टीके पर पहले से उपलब्ध शोध और विज्ञान की वजह से भी इसकी लागत कम रही।
ये टीका पूरे विश्व में अब कई जगह लगाया जा रहा है। हांलाकि ये अब भी सबसे कम मंहगा टीका है, आलोचकों का दावा है कि ये और भी सस्ता व व्यापक रूप से उपलब्ध हो सकता था यदि इसके अधिकार मुफ्त में निर्माताओं को दे दिये जाते। और यही शुरुआत में ऑक्सफोर्ड के दल का इरादा था।
ऐस्ट्राज़ेनेका जो कि विषाणु पहुंचाने वाला टीका है, काफी कम मंहगा है और कई जगहों पर उपलब्ध है। ये जनवरी 2021 से ब्रिटेन व अन्य देशों में लगाया जा रहा है। इसका उत्पाद अभी तीन देशों में हो रहा है (ब्रिटेन, भारत, नीदरलैंड), और अलग-अलग नामों (वैक्सज़ेवरिया, कोविशील्ड) से इसे बेचा जा रहा है।
कोविड-19 महामारी के पहले, विषाणु पहुंचाने वाले टीके एबोला के टीके बनाने में काम आ चुके हैं। और इन पर ज़ीका, एड्स, टीबी और अन्य बीमारियों से बचाव करने के लिये एक विकल्प के तौर पर अध्ययन भी किया गया है। सार्स-सीओवी-2 विषाणु से बचाव के लिए ऐस्ट्राज़ेनेका, जैन्सन (जे&जे), कैनसाइनो व अन्य कई टीके, जो विषाणु पहुंचाकर काम करते हैं, काम में लिए जा रहे हैं। इनमें मनुष्यों, चिंपाँज़ी, और गोरिला आदि में से लिये गये कई तरह के अलग-अलग एडिनोवायरस होते है और इन्हें मांसपेशियों में लगाया जाता है, या खिलाया जाता है, या नाक में डाला जाता है।
कोविड-19 के लिये विषाणु पहुंचाने वाले टीके का सबसे पहले लोकार्पण करने वाला दल ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के जेनर संस्थान से था। मिडल ईस्ट श्वसन संबंधी सिंड्रोम के लिये उनके चिंपांज़ी एडिनोवायरस प्लेटफॉर्म पर टीका बनाने के उनके पहले के अनुभव की वजह से वे जल्दी से सार्स-सीओवी-2 के स्पाईक प्रोटीन युक्त टीका बना पाये। ये स्पाईक प्रोटीन मनुष्यों में (ChAdOx1) प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया शुरू कर देता है। इस प्रकार के टीके पर पहले से उपलब्ध शोध और विज्ञान की वजह से भी इसकी लागत कम रही।
ये टीका पूरे विश्व में अब कई जगह लगाया जा रहा है। हांलाकि ये अब भी सबसे कम मंहगा टीका है, आलोचकों का दावा है कि ये और भी सस्ता व व्यापक रूप से उपलब्ध हो सकता था यदि इसके अधिकार मुफ्त में निर्माताओं को दे दिये जाते। और यही शुरुआत में ऑक्सफोर्ड के दल का इरादा था।